गद्यकाव्य

छायावाद काल में कुछ ऐसी गद्य रचनाऐं प्रकाश में आईं, जिनकी विषय वस्तु और अनुभूति शुद्ध काव्य की थी लेकिन वे लिखी गई थी गद्य में. रहस्योन्मुख आध्यात्मिकता का रंग लिए जिस भावात्मक गद्य का चलन छायावाद युग में हुआ उसे गद्यकाव्य कहा गया. प्राचीन संस्कृत साहित्य साहित्य-शास्त्र में गद्यकाव्य का जो अर्थ है उससे आधुनिक युग में विकसित गद्यकाव्य का कोई सीधा संबंध नहीं है.
गद्यकाव्य में कविता जैसी संवेदनशीलता और रसात्मकता होती है. प्राय: परोक्ष आलंबन को प्रियतम मान कर उसके साथ संयोग, वियोग की दशाओं की कल्पना गद्यकाव्य की विशेषता मानी जाती है. इस विधा में गद्य का स्वरूप अधिक लययुक्त और अलंकृत होता है. भावावेश की तीव्रता के कारण गद्यकाव्य की भाषा शैली में कभी-कभी असम्बद्धता भी मिलती है.
हिन्दी में गद्यकाव्य के लेखकों में सबसे अधिक प्रसिद्धि श्री रायकृष्ण दास को मिली है. साधना, छायापथ, पगला और संलाप उनकी प्रमुख रचनायें हैं. श्री रायकृष्ण दास के अतिरिक्त श्री वियोगी हरि (श्रद्धाकण), चतुरसेन शास्त्री (अन्तस्तल) और दिनेश नन्दिनी डालमिया (स्पंदन, शबनम, शारदीया) प्रमुख गद्यकाव्य लेख हैं.

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Udan Tashtari August 26, 2008 at 6:13 PM

आभार जानकारी के लिए.