रेखाचित्र

चित्रकला में जिस प्रकार रेखाओं के माध्यम से दृश्य या रूप को उभार दिया जाता है उसी प्रकार जब साहित्य में शब्दों के माध्यम से दृश्य या रूप को उभारा जाता है तो उसे रेखाचित्र कहा जाता है. इसे शब्दचित्र भी कह सकते हैं. अर्थात रेखाचित्र नाम की साहित्य विधा का संबंध चित्रकला से है. जैसे कुछ ही आड़ी-तिरछी रेखाओं के जरिए चित्रकार दृश्यवस्तु का उद्घाटन कर देता है उसी प्रकार कुछ वाक्यों को विशेष रूप में व्यवस्थित कर लेखक अपनी वक्तव्यवस्तु को उभार देता है. उदाहरण के लिए:
जब अख़बार ने शोर मचाया, तो नेताओं ने भी भाषण शुरू किए या शायद नेताओं ने भाषण दिए, तब अख़बारों ने शोर मचाया. पता नहीं पहले क्या हुआ! खैर, सरकार जागी, मंत्री जागे, अफसर जागे, फाइल उदित हुई, बैठकें चहचहाईं, नींद में सोये चपरासी कैंटीन की ओर चाय लेने चल पड़े. वक्तव्यों की झाड़ुयें सड़कों पर फिरने लगीं.
----------------------------------------शरद जोशी

इस पूरे उद्धरण में आधुनिक जीवन का एक हड़बड़ाया सा दृश्य उभारा गया है. अखबार, नेता, मंत्री, अफसर, बैठकें, हवाई जहाज यानी पूरा सरकारी तंत्र सक्रिय हो उठता है. किसान हकबका जाते हैं और इस पूरे दृश्य में अंतिम वाक्य तिरछे घुसा हुआ है जिससे आधुनिक जीवन के स्वार्थ, पाखंड और विडम्बना का पर्दाफाश हो जाता है.
इस प्रकार रेखाचित्र की प्रधान विशेषता रूप या दृश्य की प्रस्तावना है. दृश्य या रूप की बाहरी और भीतरी विशेषताओं को ताड़ लेने वाली तेज़ दृष्टि के बिना सफल रेखाचित्र नहीं लिखा जा सकता. रेखाचित्र में गीत का विशेष महत्त्व है. जैसे वक्र रेखाओं में गति का आभास होता है उसी प्रकास वाक्य अपनी बनावट में चाहे जितने सीधे हों, इस प्रकार व्यवस्थित होते हैं कि उनसे वक्रता का आभास होता है. गति, व्यंजना और चित्रात्मकता रेखाचित्र के विशेष गुण हैं. रेखाचित्र में दृश्य, रूप या व्यक्ति वास्तविक होते हैं किन्तु उनके चित्रण में कल्पना का उपयोग किया जाता है. रेखाचित्र भी कहानी से भिन्न इस बात में होते हैं कि उनमें चित्रात्मकता के माध्यम से ही सब कुछ कहना होता है.
श्रीमति महादेवी वर्मा की अतीत के चलचित्र और रामवृक्ष बेनीपुरी की माटी की मूरतें नामक रचनाओं को रेखाचित्र का उदाहरण माना जाता है.

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